न था सर पे कोई आँचल गए वो एसे निकल |
कोई शायर कहे जैसे बिना मतले की ग़ज़ल ||
मैं यूँ तो सूरते हालात पे लिखता हूँ मगर |
तुझे देखूं तो मेरी शायरी जाती है बदल ||
मेरे ख्वाबों की क़श्ती से तुझे आयेगें नज़र |
खिले जो झील में दिल की तेरी यादों के कँवल ||
ए दिल -ए -नातवाँ दिन एक से रहते न कभी |
ज़रा सा सब्र तो कर यार तू जायेगा संभल ||
यहाँ के लोग तमाशाई हैं करते न मदद |
किसी घायल को लेके कौन चले हॉस्पिटल ||
डा० सुरेन्द्र सैनी