Tuesday, 29 November 2011

हमेशा दिन को दिन


हमेशा  दिन  को  दिन  औ  रात  को  मैं  रात  कहता  हूँ |
बड़ा    बदनाम   हूँ  लोगों    में   सच्ची  बात  कहता  हूँ ||

ज़ुबां  पर  है  वही  दिल  में  है  मैं  ख़ुद  साफ़गो   इतना |
मुझे  कहना  है  जो  कुछ  भी  वो  हाथो -हाथ  कहता  हूँ ||

ग़ज़ल  में ,नज़्म  में ,छंद  में ,रुबाई  में    या  गीतों   में |
बड़ा  हुब्ब -उल -वतन  हूँ  क़ौम  के  नग़्मात कहता  हूँ ||

मैं अव्वल तो किसी भी शख़्स को ना  कह  नहीं  सकता |
अगर  कहनी  ही  पड़  जाए  अदब  के  साथ  कहता  हूँ ||

न   कोई   तोपख़ाना     पा स  है   बरछी  न  भाला  है |
क़लम  का  हूँ  सिपाही  वक़्त  के  हालात  कहता  हूँ ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

हमेशा दिन को दिन


हमेशा  दिन  को  दिन  औ  रात  को  मैं  रात  कहता  हूँ |
बड़ा    बदनाम   हूँ  लोगों    में   सच्ची  बात  कहता  हूँ ||

ज़ुबां  पर  है  वही  दिल  में  है  मैं  ख़ुद  साफ़गो   इतना |
मुझे  कहना  है  जो  कुछ  भी  वो  हाथो -हाथ  कहता  हूँ ||

ग़ज़ल  में ,नज़्म  में ,छंद  में ,रुबाई  में    या  गीतों   में |
बड़ा  हुब्ब -उल -वतन  हूँ  क़ौम  के  नग़्मात कहता  हूँ ||

मैं अव्वल तो किसी भी शख़्स को ना  कह  नहीं  सकता |
अगर  कहनी  ही  पड़  जाए  अदब  के  साथ  कहता  हूँ ||

न   कोई   तोपख़ाना     पा स  है   बरछी  न  भाला  है |
क़लम  का  हूँ  सिपाही  वक़्त  के  हालात  कहता  हूँ ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

वक़्त जाया किया


वक़्त      जाया     किया    सोचते    सोचते |
कुछ    नहीं    कर    सका   सोचते  सोचते ||

मेरी    मंजिल    किनारे    पे   हँसती  रही |
मैं    भँवर    में    फँसा    सोचते    सोचते ||

राह    सुनसान    है   और    जंगल    घने |
और    मैं    चल    रहा    सोचते    सोचते || 

पास   आने    में    वो   हिचकिचाते   रहे |
मैं    भी    आगे    बढ़ा   सोचते    सोचते || 

मैंने    दी    जो    बधाई    उसे    ईद   की |
उसने  भी  कुछ    कहा  सोचते    सोचते || 

मेरे दिल पे उसे लिखना था ख़ुद का नाम |
नाम    मेरा    लिखा    सोचते     सोचते || 

सब तो जाने  कहाँ  से  कहाँ   जा  चुके |
और   मैं   रह   गया  सोचते    सोचते || 

ज़िन्दगी  की  ग़ज़ल  तो  अधूरी  रही |
इक  सही    क़ाफ़िया सोचते   सोचते || 

लोग  पढ़ - पढ़   के  सारे  परेशान  हैं |
मैंने क्या लिख दिया सोचते   सोचते ||  

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 



Monday, 28 November 2011

जितने करने थे


जितने करने थे उसको सितम कर  गया |
और तो कुछ नहीं आँख नाम  कर  गया ||

इस  सफ़ाई  से चुकता किया  है हिसाब |
एक  पाई  ज़ियादा  न  कम  कर   गया ||

याद  करने  की  कोई  बची अब न बात |
आज सारा ही क़िस्सा ख़तम कर गया || 

पाल  रक्खे  थे  दिल में जो उसके लिए |
दूर  सारे  के   सारे   भरम   कर   गया ||

जिसके  बनने  बनाने  में  बरसों   लगे |
वो ख़तम रिश्ता सब एकदम कर गया || 

या  ख़ुदा  यूँ  हमारी  वफ़ाओं  पे   कौन ?
पैदा  सबके  दिलों  में  वहम  कर  गया ||

अश्क़   मेरे   बता  देंगे  इसका  जवाब |
ज़ुल्म वो कर गया या करम  कर गया ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Friday, 11 November 2011

ख़्वाबों की झील में


ख़्वाबों  की  झील  में  खिले  हैं  याद  के  कँवल |
कुछ  हो  रहेगा  आज  दिल -ए -नातवाँ  संभल ||

 उस  हुस्न -ए -बेपनाह  का  आलम तो  देखिये  |
टकराके  आफ़ताब  की  किरने      रही  फिसल ||

तुम  आ गए  तो  छंट    गई  तन्हाइयों  की  धुंध |
हालात  मुझ  ग़रीब  के  तुमने    दिए        बदल ||

पैदायशी  ये  दिल  मेरा  नाज़ुक       बड़ा      रहा |
अब भी ज़रा सी बात      पे    ये    जाय है मचल ||

देखे  उठा  के  आज  वो  तेरे  पुराने             ख़त |
पढ़ -पढ़     के    तेरे   नाम   पे कहते रहे ग़ज़ल ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Tuesday, 18 October 2011

सच को झूठ बताने


सच  को   झूठ   बताने  वाले  बैठे  हैं |
तिल  का  ताड़  बनाने  वाले  बैठे  हैं ||

 माल -ए-मुफ़्त उड़ाने  वाले  बैठे  हैं |
सारा  मुल्क    पचाने  वाले  बैठे  हैं ||

कुछ   ही   लोग   बचाने  वाले  बैठे  हैं |
बाकी   सिर्फ़    मिटाने   वाले   बैठे  हैं ||

बस   दो    चार    कमाने   वाले  बैठे  हैं |
सारे     यार लुटाने     वाले    बैठे      हैं ||

सेहत  आज  पडी  है  सबकी  मुश्किल  में |
दुश्मन    ज़हर    खिलाने   वाले   बैठे   हैं ||

कब  तक  जान  परिंदे  की  बच  पाएगी ?
एक   से   एक   निशाने   वा ले  बैठे    हैं ||                                                     

क्या  अंजाम   मिलावट ख़ोरों  का  होना ?
माई  -  बाप     बचाने      वाले   बैठे    हैं ||

किसको  दर्द  सुनाये  अपना  महफ़िल  में ?
सब      तो   शोर   मचाने   वाले   बैठे    हैं ||

रूठा  यार  मनाना  अब  नामुमकिन  है |
चुगली    यार     लगाने   वाले   बैठे   हैं ||

लीडर  आज  मुनअक़िद जलसे  में  सारे |
ख़ाली    बात    बनाने    वाले    बैठे    हैं ||

पैसा  लेकर  फ़क़त  मेरे  ही  फेवर  में |
अपना   हाथ   उठाने   वाले   बैठे    हैं ||

क्या  ईमान  रहेगा  क़ायम  वोटर  का ?
दारू  ख़ूब     पिलाने    वाले    बैठे    हैं |

किसकी  आज  इबादत  कीजेगा  भैय्या?
सब    भगवान   कहाने   वाले   बैठे   हैं ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 6 July 2011

न था सर पे कोई आँचल

न था सर पे कोई आँचल गए वो   एसे निकल |
कोई शायर कहे जैसे   बिना  मतले की   ग़ज़ल ||

मैं यूँ  तो सूरते  हालात  पे  लिखता  हूँ   मगर |
तुझे    देखूं    तो मेरी     शायरी  जाती   है बदल ||

मेरे      ख्वाबों  की  क़श्ती   से  तुझे   आयेगें नज़र |
खिले जो झील में दिल की तेरी यादों के कँवल ||

ए दिल -ए -नातवाँ दिन एक से रहते   न कभी |
ज़रा सा   सब्र तो कर   यार तू   जायेगा   संभल ||

यहाँ     के   लोग   तमाशाई   हैं करते   न   मदद |
किसी   घायल   को   लेके कौन चले हॉस्पिटल ||

                                                                      डा० सुरेन्द्र सैनी