Tuesday, 29 November 2011

हमेशा दिन को दिन


हमेशा  दिन  को  दिन  औ  रात  को  मैं  रात  कहता  हूँ |
बड़ा    बदनाम   हूँ  लोगों    में   सच्ची  बात  कहता  हूँ ||

ज़ुबां  पर  है  वही  दिल  में  है  मैं  ख़ुद  साफ़गो   इतना |
मुझे  कहना  है  जो  कुछ  भी  वो  हाथो -हाथ  कहता  हूँ ||

ग़ज़ल  में ,नज़्म  में ,छंद  में ,रुबाई  में    या  गीतों   में |
बड़ा  हुब्ब -उल -वतन  हूँ  क़ौम  के  नग़्मात कहता  हूँ ||

मैं अव्वल तो किसी भी शख़्स को ना  कह  नहीं  सकता |
अगर  कहनी  ही  पड़  जाए  अदब  के  साथ  कहता  हूँ ||

न   कोई   तोपख़ाना     पा स  है   बरछी  न  भाला  है |
क़लम  का  हूँ  सिपाही  वक़्त  के  हालात  कहता  हूँ ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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