हमेशा दिन को दिन औ रात को मैं रात कहता हूँ |
बड़ा बदनाम हूँ लोगों में सच्ची बात कहता हूँ ||
ज़ुबां पर है वही दिल में है मैं ख़ुद साफ़गो इतना |
मुझे कहना है जो कुछ भी वो हाथो -हाथ कहता हूँ ||
ग़ज़ल में ,नज़्म में ,छंद में ,रुबाई में या गीतों में |
बड़ा हुब्ब -उल -वतन हूँ क़ौम के नग़्मात कहता हूँ ||
मैं अव्वल तो किसी भी शख़्स को ना कह नहीं सकता |
अगर कहनी ही पड़ जाए अदब के साथ कहता हूँ ||
न कोई तोपख़ाना पा स है बरछी न भाला है |
क़लम का हूँ सिपाही वक़्त के हालात कहता हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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