Friday, 11 November 2011

ख़्वाबों की झील में


ख़्वाबों  की  झील  में  खिले  हैं  याद  के  कँवल |
कुछ  हो  रहेगा  आज  दिल -ए -नातवाँ  संभल ||

 उस  हुस्न -ए -बेपनाह  का  आलम तो  देखिये  |
टकराके  आफ़ताब  की  किरने      रही  फिसल ||

तुम  आ गए  तो  छंट    गई  तन्हाइयों  की  धुंध |
हालात  मुझ  ग़रीब  के  तुमने    दिए        बदल ||

पैदायशी  ये  दिल  मेरा  नाज़ुक       बड़ा      रहा |
अब भी ज़रा सी बात      पे    ये    जाय है मचल ||

देखे  उठा  के  आज  वो  तेरे  पुराने             ख़त |
पढ़ -पढ़     के    तेरे   नाम   पे कहते रहे ग़ज़ल ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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