ख़्वाबों की झील में खिले हैं याद के कँवल |
कुछ हो रहेगा आज दिल -ए -नातवाँ संभल ||
उस हुस्न -ए -बेपनाह का आलम तो देखिये |
टकराके आफ़ताब की किरने रही फिसल ||
तुम आ गए तो छंट गई तन्हाइयों की धुंध |
हालात मुझ ग़रीब के तुमने दिए बदल ||
पैदायशी ये दिल मेरा नाज़ुक बड़ा रहा |
अब भी ज़रा सी बात पे ये जाय है मचल ||
देखे उठा के आज वो तेरे पुराने ख़त |
पढ़ -पढ़ के तेरे नाम पे कहते रहे ग़ज़ल ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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